Sunday, July 6, 2014

सार्थ ज्ञानेश्वरी  संपादक शंकर वामन दांडेकर :निवडक ओव्या :

बालक बापचिये ताटी रीगे / रीगोनि बापतेच जेववू लागे / की तो संतोषलेनी वेगे / मुखची वोडवी //अ९(१५)

No comments:

Post a Comment