श्री ज्ञानेश्वरी गौरव......स्वामी स्वरूपानंद
श्री ज्ञानेश्वरी अमृत्गंगा /
बहुत सुकृते लाभली जगा /
पावन करी अंतरांगा /
अंगपअत्यंगा जीवाचिया //१//
भक्ती भावे करिता स्नान /
निर्मळ होये अंतकरण /
जिवासी परम समाधान /
साक्षात दर्शन शिवाचे //२//
जिवा- शीवा ची होता भेटी /
साक्षात दर्शन शिवाचे //२//
जिवा- शीवा ची होता भेटी /
मावळोनि ज्ञाता - ज्ञाएआदि त्रिपुटी /
प्रगटे सोहं- भाव प्रतीति / उरे शेवटी ज्ञाप्ती मात्रे //३//
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