Monday, March 28, 2011


श्री ज्ञानेश्वरी गौरव......स्वामी स्वरूपानंद

श्री ज्ञानेश्वरी अमृत्गंगा /
बहुत सुकृते लाभली जगा /
पावन करी अंतरांगा /
अंगपअत्यंगा जीवाचिया //१//
भक्ती भावे करिता स्नान /
निर्मळ होये अंतकरण /
जिवासी परम समाधान /
साक्षात दर्शन शिवाचे //२//
जिवा- शीवा ची  होता भेटी /
मावळोनि ज्ञाता - ज्ञाएआदि  त्रिपुटी /
प्रगटे सोहं- भाव प्रतीति / 
उरे शेवटी ज्ञाप्ती मात्रे //३//







No comments:

Post a Comment