हें शब्देविण संवादिजे / इंद्रिया नेणतां भोगिजे / बोला आदी झोंबिजे / प्रमेयासी //१०२//
जे अपेक्षिजे विरक्ती / सदा अनुभविजे संती / सोहंभावे पारंगतीं/ रमिजे जेथ //१०३//
जे अपेक्षिजे विरक्ती / सदा अनुभविजे संती / सोहंभावे पारंगतीं/ रमिजे जेथ //१०३//