Tuesday, September 24, 2019

आता पै माझेनि एके  अंशे / हे जग व्यापिले  असे / यालागी भेदू    सांडूनि  सरिसें  साम्ये  भज //१७// श्लोक ४२ अ १०


माझ्या  एकाच अंशाने  हे  जग  व्यापलेले आहे ; याकरीता  भेदभावना  टाकून  ऐकदृष्टीने मला  सर्व ठिकाणी         
सारखे  भज .     

Friday, September 20, 2019

Nitya Path  पाठ :

ऊँ नमोजी आद्या /                                      
वेदप्रतिपाद्या /
जय जय स्वसंवेद्या /
देवा तूंची गणेश /
आत्मरुपा //1// 

सकलमतीप्रकाश /
म्हणे निवृत्तीदास /
अवधारिजो //२//

आता अभिनववाग्विलासिनी /
जे चातुर्यार्थकलाकामिनी /
ते श्रीशारदा विश्वमोहिनी /
नमिली मियां //३//

मज हृदयी सदगुरू /
जेणें तारिलो हा संसारपूरू/
म्हणौनि विशेषे अत्यादरू /
विवेकावरी /४//

या उपाधीमाजी गुप्त /
चैतन्य असे सर्वगत /
ते तत्त्वज्ञ संत/
स्वीकारिती //५//

उपजे तें नाशे /
नाशले पुनरपि दिसे /
हें घटिकायंत्र तैसें /
परिभ्रमे गा //६//

जैसे मार्गे चि चालता /
अपावो न पवे सर्वथा /
कां दीपाधारेवर्ततां / 
नाडळिजॆं //७//

तयापरी पार्था /
स्वधर्मे राहाटता /
सकाळकामपूर्णता /
सहजें होंय //८//

सुखी संतोषा न यावे /
दुखी विषादा न भजावे /
आणि लाभालाभ न धरावे /
मनामाजी / 9/

आपणयां उचिता /
स्वधर्मे राहाटतां /
जें पावेतें निवांता /
साहोनि जावे //१०/
  
आम्ही हि विचारि लें / 
 तंव ऐसे चि हे मना आले / 
जे न सांडिजे तुवां आपुलें /
विहित कर्म //११/

/परि कर्मफळी आस न करावी /
आणि कुकर्मी संगति न व्हावी /
हे सत्क्रिया चि आचरावी /
हेतुविन //१२//

तूं योगयुक्त होऊनी /
फळाचा संग टाकुनी /
मग अर्जुना चित  देऊनी /
करी कर्मे //१३//

परि आदरिले कर्म दैवें /
जरी समाप्ती ते पावे /
तरी विशेषे तेथ तोषावें /
हे हे नको //१४//
की निमित्ते कोणे एके /
तें सिद्धीन वचतां ठाके /
तरी तेथिचेनि अपरितोखें /
 क्षोभावे ना //१५//

 देखे जेतुलाले कर्म निपजे /
तेतुलें आदिपुरुषी अर्पिजे / 
तरी परिपूर्ण सहजे / 
जाहलें जाण //१६//

म्हणौनी जें जें उचित / 
आणि अवसरेकरूनि प्राप्त / 
ते कर्म हेतुरहित / 
आचरे तूं //१७//

देखे अनुक्रमाधारे /
स्वधर्म जो आचरे /
तो मोक्ष तेणें व्यापारे /
निश्चित पावे //१८//

स्वधर्म जो बापा / 
तो नित्ययज्ञ जाण पां / 
म्हणौनी वर्ततां तेथ पापा / 
संचारू नाहीं //१९//

हा निजधर्म जैं सांडे / 
आणि कुकर्मी रति घडे / 
तैं चि बंध पडे /
 संसारिक //२०//

म्हणौनी स्वधर्मानुष्ठान /
ते अखंड यज्ञ याजन /
जो करी तया बंधन /
काही ची  न घडे //२१//


अगा  जया जें विहित /
तें ईश्वराचे मनोगत /
म्हणौनि केलिया निभृंत /
सापडे ची तो //२२//


ते विहित कर्म पांडवा /
आपुला अनन्य वोलावा /
आणि हे चि परम सेवा /
मज सर्वात्मकाची //२३//

तया सर्वात्मका ईश्वरा /
स्वकर्मकुसुमांची वीरा /
पूजा केली होय अपारा /
तोषालागी //२४//

ते क्रिया जात आघवे / 
जे जैसे निपजेल स्वभावे / 
ते भावना करोनि करावे / 
माझिया मोहरा //२५// 

आणि हे कर्म मी कर्ता / 
कां आचरेन या अर्था / 
ऐसा अभिमान झणे चित्ता /

रिगो देसी //२६//

तुवां शरीरपरा नोहावें /
कामनाजात सांडावे  /
मग अवसरोचित भोगावे /
भोग सकाळ //२७//

तुं मनसा नियम करीं /
निश्चळु होय अंतरी / 
मग कर्मेंद्रिये व्यापारु / 
वर्ततु सुखे //२८//

परिस पां सव्यसाची  / 
मूर्ती लाहोनि देहाची /
खंती करती कर्माची /
ते गावंढे //२९//


देख पां जनकादिक / 
कर्मजात अशेख /
न सांडीत मोक्क्षसुख /
पावते जाहले //३०//


देखे प्राप्तार्थ जाहले/ 
ते निष्कामता पावले / 
तयाही कर्त्तव्य असे  उरले /
लोकालागी //३१//

 
मार्गी अन्धासरिसा /
पुढे देखणाही चाले  जैसा / 
अज्ञाना प्रगटावा धर्म तैसा / 
आचरोनी //३२//

एथ वडील जें जें करिती / 
तया नाम धर्म ठेविती /
ते ची येर अनुष्ठिती /
सामान्य सकळ //३३//
हें ऐसें असे स्वभावें /
म्हणौनि कर्म न संडावे / 
विशेषे आचरावे  /
लागे संतीं  //३४//

दीपाचेनि प्रकाशे /
गृहीचे व्यापार जैसे / 
देही कर्मजात तैसें / 
योगयुक्त //३५//

तो कर्मे करी सकळें / 
परी कर्मबंधा नाकळे / 
जैसें न सिंपे जळी जळें / 
पद्मपत्र //३६//

तयाही देह एक कीर आथी /
लौकिकी सखदुखी तयात म्हणती /
परी आम्हाते ऐसी प्रतीति /
परब्रह्म ची हां //३७//

 देह तरी वरिचीलीकडे / 
आपुलिया परी हिंडे /
परी बैसका न मोडे /
मानसीची //३८//

अर्जुना समत्व चित्ताचे /
तेची सार जाण योगाचे /
जेथ मन आणि बुद्धीचे /
ऐक्य आथी //३९// 

देखे अखंडित प्रसन्नता /
आथी जेथ चित्ता /
तेथ रिगणे नाही समस्ता /
संसारदुःखां//४०//

जैसे अमृताचा निर्झरु /
प्रसवे जयाचा जठरु /
तया क्षुधेतृषेचा अडदरू /
कहीचि नाही //४१//

तैसे हृदय प्रसन्ना होये /
तरी दुख कैचे के आहे /
तेथ आपैसे बुद्धी राहे /
परमात्मरूपी //४२//

जैसा निर्वातीचा दीपु /
सर्वथा नेणे कंपु /
तैसा  स्थिरबुद्धी  स्वस्वरूपु /
योगयुक्त //४३//

जया पुरुषांचा ठायी /
कर्माचा तरी खेदु नाही /
आणि फलापेक्षा काही /
संचरेना //४४//
आणि हे कर्म मी करीन / 
अथवा आदरिले सिद्धी नेईन /
येणे संकल्पेही जयाचे मन /
विटाळेना //४५//
ज्ञानाग्नीचेनि मुखे /
जेणे जाळिली कर्मे अशेखे /
तो परब्रह्मचि मनुष्यवेखें /
वोळख तूं //४६//

ते ज्ञान पैं गा बरवें /
जरी मनी आथी जाणावें /
तरी संतां यां भजावें /
सर्वस्वेंसीं //४७//

जे ज्ञानाचा कुरुठा /
तेथ सेवा हा दारवंटा /
तो स्वाधीन करी सुभटा /
वोळगोनी //४८//
तरी तनुमनु जीवें /
चरणासी लागावें /
आणि अगर्वत्ता करावें /
दास्य सकाळ // ४९//

मग अपेक्षित जे आपुलें / 
तेही सांगति पुसिलें / 
जेणें अन्तःकरण बोधले / 
संकल्पा न ये //५०// 

ते  वेळी आपणपेयां सहिते /
इये अशेषेही भूतें /
माझ्या स्वरूपीं अखंडितें /
देखसी तूं //५१//
ऐसें ज्ञानप्रकाशे पाहेल / 
ते मोहांधकारू जाईल / 
जैं गुरुकृपा होईल / 
पार्था गा //५२//
जरी कल्माशाचा आगरु /
तूं भ्रांतीचा सागरू /
 व्योमोहाचा डोंगरु /
होऊन अससी //५३//

तरी ज्ञानशक्तीचेनि पाडें /
हें आघवें चि गां थोकडें /
ऐसे सामर्थ्य असे चोखडे /
ज्ञानी इये //५४//

मोटके गुरुमुखे उदैजत दिसे /
 हृदयी स्वयंभची असे /
प्रत्यक्ष फावो लागे तैसे /
आपैसायाचे //५५//

सांगे अग्नीस्तव धूम होये /
 तिये धूमीं काय अग्नी आहे /
तैसा विकारु हा मी नोहें /
जरी विकाराला असे //५६//

देह तंव पांचाचे जालें /
हें कर्माचे गुणी  गुंथले /
भंवतसे चाकीं सूदलें /
जन्ममृत्यूच्या //५७//

हे काळानळाच्या तोंडी /
घातली लोणियांची उंडी /
माशी पांख पाखडीं /
तंव हे सरे //५८//

या देहाची हे दशा /
आणि आत्मा  तो एथ ऐसा /
पै नित्य सिद्ध आपैसा  /
अनादिपणे //५९//

सकळ ना निष्कळु /
अक्रीय ना क्रियाशीलु /
कृश ना स्थूलु /
निर्गुणपणें //६०//

आनंद ना निरानंदु /
एक ना विविधु /
मुक्त ना बद्धु /
आत्मपणें //६१//

तें परमतत्व पार्था /
होती ते सर्वथा /
जे आत्मानात्मव्यवस्था /
राजहंस //६२//
ऐसेनि जे निजज्ञानि /
खेळत सुखे त्रिभुवनी /
जगद्रूपा मनीं /
सांठऊनि मातें //६३//

हे विश्वचि माझे घर /
ऐसी मती जयाची स्थिर /
किम्बहुना चराचर  /
आपण जाहला //६४//
मग याहीवरी पार्था /                                     
माझिया भजनी आस्था /
तरी तयातें मी माथां /
मुकुट करीं //६५//

तो मी वैकुंठी नसें /
वेळु एक भानुबिम्बी न दिसें /
वारी योगीयांचीही मनसें/
उमरडोनि जाय //६६//

परी तयापाशी पांडवा /
मी हारपला गिंवसावा / 
जेथ नामघोषु बरवा /
करिती माझा //६७//

कृष्ण  विष्णु  हरि  गोविन्द /
या नावाचे निखळ प्रबंध /
माजी आत्मचार्चा विषध /
उदंड गाती //६८/

जयाचिये वाचे माझे आलाप /
दृष्टी भोगी माझे ची रूप /
तयाचे मन संकल्प /
माझा ची वाहे //६९//

माझिया कीर्तीविण /
जयाचे रिते नाही श्रवणं /
जया सर्वांगी भूषण /
माझी सेवा //७०//

ते पापायोनीही होतु का /
ते श्रुताधीतही न होतु का /
परी मजसी तुकिता तुका /
तुटी नाही  //७१//

ते चि भलतेणे भावें /
मन मत आंतु येते होआवे /
आलें तरी आघवें /
मागील वावो //७२//

जैसे तव चि वहाळ वोहळ /
जंव न पवती गंगाजळ /
मग होऊनी ठाकती केवळ /
गंगारूप //७३//

तैसे क्षत्री  वैश स्त्रिया  /
कां शुद्र अंत्यजादी इया /
जाती तव चि वेगळालिया /
जाव न पवती मातें //७४//


 यालागी पापयोनीही अर्जुना /
कां वैष शुद्र अंगना /
माते भजतां सदना /
माझिया येती //७५//

पैं भक्ती एकी मी जाणें /
तेथ सानें थोर न म्हणे /
आम्ही भावाचे पाहुणे / 
भलतेया //७६//

येर  पत्र पुष्प फळ /
हे भजावया मिस केवळ / 
वाचुनी आमुचा लाग निष्कल / 
भक्तितत्त्व //७७//

मग भूते हे भाष विसरला /
जे दिठी मी चि आहे सूदला / 
म्हणौनि निर्वैर झाला / 
सर्वत्र भजे //७८//

हे समस्थही श्रीवासुदेव /
ऐसा प्रतीतिरसाचा वोतला भाव /
म्हणोनि भाक्तामाजी राव /
आणि ज्ञानिया तो चि //७९ //

तुं मन हे मीचि करी /
माझिया भजनी प्रेम धरी /
सर्वत्र नमस्कारी /
मज एकाते //८०//

माझेनि अनुसंधाने देख /
संकल्पु जाळणे निःशेख /
मध्याजी चोख /
याची नाव//८१//

ऐसा मियां आथिला होसी /
तेथ माझीयासी स्वरुपा पावसी /
हें अंतःकरणीचे तुजपासी /
बोलिजत असे //८२//

तू मन बुद्धी साचेसी / 
जरी माझिया स्वरूपी अर्पिसी / 
तरी मते जी गा पावसी /
हे माझी भाक //८३//

अथवा हे चित / 
मनबुद्धीसहित  /
माझ्या हाती अचुंबित /
न शकसी देवो //८४//
तरी गा ऐसें करी / 
यया आठा प्राहारामाझारी / 
मोटके निमिषभरी / 
देतु जाय //८५//

मग जें जें का निमिख /
देखेल माझें सुख /
तेतुले आरोचक / 
विषयीं घेईल //८६//

 पुनवेहुनी जैसे /
शशी बिंब दिसें  दिसें /
हारपत अंवसें / 
नाही चि होये  //८७//

 तैसे भोगाआंतूनि  निगता / 
चित मजमाजी रिगता  / 
हळू हळू पंडुसुता / 
मिची होईल //८८//

म्हणौनी अभ्यासासी काहीं / 
सर्वथा दुष्कर नाही /
यालागीं माझ्या ठायीं / 
अभ्यासें मीळ //८९//  

कां जे यया मनाचें एक निकें /
जें देखिले गोडीचिया ठाया सोके / 
म्हणौनी अनुभवसुखचि  कवतिके / 
दावित जाइजे //९०//

बळियें इंद्रियें येती मना / 
मन ऐकवते पवना / 
पवन सहजे गगना /
मिळोची लागे //९१//

ऐसे नेणो काय आपैसे /
तयातेचि कीजे अभ्यासें /
समाधि घर पुसे /
मानसाचे //९२//

ऐसा जो कामक्रोध लोभा / 
झाडी करुनी ठाके उभा / 
तोची येवढिया लाभा / 
गोसावी होय //९३//


पाहे पां ॐ तत्सत् ऐसे /
हें बोलणें तेथ नेतसे /
जेथुनी का हें  प्रकाशे /
दृश्यजात //९४//


 सुवर्णमणि सोनया /
ये कल्लोळु जैसा पाणिया /
तैसा मज धनंजया /
शरण ये तुं // ९५//
म्हणौनी मी होऊनी मातें /
सेवणें आहे आयितें /
तें करीं हाता येतें /
ज्ञानें येणें //९६//

यालागी सुमनु आणि शुद्धमती / 
जो अनिंदकु अनन्यगति / 
पैं गा गौप्यही परी तया प्रती /
चावळिजे सुखे //९७//


तरी प्रस्तुत आता  गुणीं इहीं /
तू वाचून आणिक नाही / 
म्हनौनी गुज तरी तुझ्या ठायी /
लपवू नये // ९८//

ते हे मंत्ररहस्य गीता / 
मेळवी जो माझिया भक्ता / 
अनन्यजीवना माता /
बळका जैसी //९९//      
तैसी भक्तां   गीतेसी /
भेटी करी जो आदरेसी /
तो देहापाठीं मजसी / 
एकचि होय //१००//

ऐसे सर्व रूपरूपसें / 
सर्व दृष्टीडोळसे / 
सर्वदेशनिवासे / 
बोलिले श्रीकृष्णे //१०१// 

हे शब्देविण संवादिजे /
इंद्रिया नेणतां भोगिजे /
बोला आदी झोंबिजे / 
प्रमेयासी //१०२/

 जे अपेक्षिजे विरक्ती /
सदा अनुभविजे संती /
सोहंभावे पारंगतीं/
 रमिजे जेथ //१०३ //

हे गीतानाम विख्यात /
सर्व वांग्मया चे मथित/
 आत्मा जेणे हस्तगत /
रत्न होय // १०४ //

वत्साचेनी वोरसे /
दुभते होय घरोदेसे /
जाले पांडवाचेनि मिशे /
जगदुधरण //१०५//


आता विश्वात्मके देवे / 
येणे वाग्यज्ञे तोषवे  / 
तोषोनि मज द्यावें /
 पसायदान //१०६//

जे खळांची व्यंकटी सांडो/
तयां सत्कर्मी रति वाढो  / 
भूता परस्परे पडो / 
मैत्र जीवांचे //१०७//



तेथ म्हणे श्रीविश्वेश्वरावो / 
हा होईल दानपसावो / 
हेणें वरे ज्ञानदेवो / 
सुखिया झाला // १०८ //



 भरोनि  सद्भावाची अंजुळी /
मियां वोवियाफुलें मोकळीं /
अर्पिली अन्घ्रीयुगली / 
विश्वरुपाच्या //१०९//

Monday, September 9, 2019

तेवी  माझे विभूती विशेष / जरी जाणो पाहिजेती अशेष / तरी स्वरूप एक निर्दोष / जाणिजे माझे //६२//अ १० श्लोक ६२

त्या प्रमाणे मझ्या मुख्य मुख्य विभूती जर सर्वच जाणण्याची इच्छा असेल तर एक मझेच दोष रहित स्वरूप जाणावे .