Friday, June 27, 2014

विषयवविषचा पडीपाडू / गोड परमार्थू लागे कडू/ विषय तो गोडू/ जीवासी जाहला//अ१० श्लोक १३-५९

Wednesday, June 25, 2014

एसेनी जे निज़ ज्ञानी/ खेळत सुखे त्रिभुवनी/ जगदरूपा मनी/ साठवूनी माते//जे जे भेटे भूत/ते ते मानिजे भगावंत/ हा भक्ति योगु  निश्चित जाण माझा//  Gyn ch 10 shlok 8 (17-18)

Tuesday, June 24, 2014

 नित्य  पाठ :

ऊँ नमोजी आद्या /                                     
वेदप्रतिपाद्या /
जय जय स्वसंवेद्या /
देवा तूंची गणेश /
आत्मरुपा //1//


सकलमतीप्रकाश /
म्हणे निवृत्तीदास /
अवधारिजो //२//


आता अभिनववाग्विलासिनी /
जे चातुर्यार्थकलाकामिनी /
ते श्रीशारदा विश्वमोहिनी /
नमिली मियां //३//


मज हृदयी सदगुरू /
जेणें तारिलो हा संसारपूरू/
म्हणौनि विशेषे अत्यादरू /
विवेकावरी /४//


या उपाधीमाजी गुप्त /
चैतन्य असे सर्वगत /
ते तत्त्वज्ञ संत/
स्वीकारिती //५//


उपजे तें नाशे /
नाशले पुनरपि दिसे /
हें घटिकायंत्र तैसें /
परिभ्रमे गा //६//


जैसे मार्गे चि चालता /
अपावो न पवे सर्वथा /
कां दीपाधारेवर्ततां /
नाडळिजॆं //७//


तयापरी पार्था /
स्वधर्मे राहाटता /
सकाळकामपूर्णता /
सहजें होंय //८//


सुखी संतोषा न यावे /
दुखी विषादा न भजावे /
आणि लाभालाभ न धरावे /
मनामाजी / 9/


आपणयां उचिता /
स्वधर्मे राहाटतां /
जें पावेतें निवांता /
साहोनि जावे //१०/
 
आम्ही हि विचारि लें /
 तंव ऐसे चि हे मना आले /
जे न सांडिजे तुवां आपुलें /
विहित कर्म //११/


/परि कर्मफळी आस न करावी /
आणि कुकर्मी संगति न व्हावी /
हे सत्क्रिया चि आचरावी /
हेतुविन //१२//


तूं योगयुक्त होऊनी /
फळाचा संग टाकुनी /
मग अर्जुना चित  देऊनी /
करी कर्मे //१३//


परि आदरिले कर्म दैवें /
जरी समाप्ती ते पावे /
तरी विशेषे तेथ तोषावें /
हे हे नको //१४//

की निमित्ते कोणे एके /
तें सिद्धीन वचतां ठाके /
तरी तेथिचेनि अपरितोखें /
 क्षोभावे ना //१५//


 देखे जेतुलाले कर्म निपजे /
तेतुलें आदिपुरुषी अर्पिजे / 
तरी परिपूर्ण सहजे / 
जाहलें जाण //१६//


म्हणौनी जें जें उचित /
आणि अवसरेकरूनि प्राप्त /
ते कर्म हेतुरहित /
आचरे तूं //१७//


देखे अनुक्रमाधारे /
स्वधर्म जो आचरे /
तो मोक्ष तेणें व्यापारे /
निश्चित पावे //१८//


स्वधर्म जो बापा /
तो नित्ययज्ञ जाण पां /
म्हणौनी वर्ततां तेथ पापा /
संचारू नाहीं //१९//


हा निजधर्म जैं सांडे /
आणि कुकर्मी रति घडे /
तैं चि बंध पडे /
 संसारिक //२०//


म्हणौनी स्वधर्मानुष्ठान /
ते अखंड यज्ञ याजन /
जो करी तया बंधन /
काही ची  न घडे //२१//




अगा  जया जें विहित /
तें ईश्वराचे मनोगत /
म्हणौनि केलिया निभृंत /
सापडे ची तो //२२//




ते विहित कर्म पांडवा /
आपुला अनन्य वोलावा /
आणि हे चि परम सेवा /
मज सर्वात्मकाची //२३//


तया सर्वात्मका ईश्वरा /
स्वकर्मकुसुमांची वीरा /
पूजा केली होय अपारा /
तोषालागी //२४//


ते क्रिया जात आघवे /
जे जैसे निपजेल स्वभावे /
ते भावना करोनि करावे /
माझिया मोहरा //२५//


आणि हे कर्म मी कर्ता /
कां आचरेन या अर्था /
ऐसा अभिमान झणे चित्ता /

रिगो देसी //२६//


तुवां शरीरपरा नोहावें /
कामनाजात सांडावे  /
मग अवसरोचित भोगावे /
भोग सकाळ //२७//


तुं मनसा नियम करीं /
निश्चळु होय अंतरी /
मग कर्मेंद्रिये व्यापारु /
वर्ततु सुखे //२८//


परिस पां सव्यसाची  /
मूर्ती लाहोनि देहाची /
खंती करती कर्माची /
ते गावंढे //२९//




देख पां जनकादिक /
कर्मजात अशेख /
न सांडीत मोक्क्षसुख /
पावते जाहले //३०//




देखे प्राप्तार्थ जाहले/
ते निष्कामता पावले /
तयाही कर्त्तव्य असे  उरले /
लोकालागी //३१//

 
मार्गी अन्धासरिसा /
पुढे देखणाही चाले  जैसा /
अज्ञाना प्रगटावा धर्म तैसा /
आचरोनी //३२//


एथ वडील जें जें करिती /
तया नाम धर्म ठेविती /
ते ची येर अनुष्ठिती /
सामान्य सकळ //३३//

हें ऐसें असे स्वभावें /
म्हणौनि कर्म न संडावे /
विशेषे आचरावे  /
लागे संतीं  //३४//


दीपाचेनि प्रकाशे /
गृहीचे व्यापार जैसे /
देही कर्मजात तैसें /
योगयुक्त //३५//


तो कर्मे करी सकळें /
परी कर्मबंधा नाकळे /
जैसें न सिंपे जळी जळें /
पद्मपत्र //३६//


तयाही देह एक कीर आथी /
लौकिकी सखदुखी तयात म्हणती /
परी आम्हाते ऐसी प्रतीति /
परब्रह्म ची हां //३७//

 देह तरी वरिचीलीकडे / 
आपुलिया परी हिंडे /
परी बैसका न मोडे /
मानसीची //३८//

अर्जुना समत्व चित्ताचे /
तेची सार जाण योगाचे /
जेथ मन आणि बुद्धीचे /
ऐक्य आथी //३९// 

देखे अखंडित प्रसन्नता /
आथी जेथ चित्ता /
तेथ रिगणे नाही समस्ता /
संसारदुःखां//४०//

जैसे अमृताचा निर्झरु /
प्रसवे जयाचा जठरु /
तया क्षुधेतृषेचा अडदरू /
कहीचि नाही //४१//

तैसे हृदय प्रसन्ना होये /
तरी दुख कैचे के आहे /
तेथ आपैसे बुद्धी राहे /
परमात्मरूपी //४२//

जैसा निर्वातीचा दीपु /
सर्वथा नेणे कंपु /
तैसा  स्थिरबुद्धी  स्वस्वरूपु /
योगयुक्त //४३//

जया पुरुषांचा ठायी /
कर्माचा तरी खेदु नाही /
आणि फलापेक्षा काही /
संचरेना //४४//

आणि हे कर्म मी करीन / 
अथवा आदरिले सिद्धी नेईन /
येणे संकल्पेही जयाचे मन /
विटाळेना //४५//

ज्ञानाग्नीचेनि मुखे /
जेणे जाळिली कर्मे अशेखे /
तो परब्रह्मचि मनुष्यवेखें /
वोळख तूं //४६//

ते ज्ञान पैं गा बरवें /
जरी मनी आथी जाणावें /
तरी संतां यां भजावें /
सर्वस्वेंसीं //४७//

जे ज्ञानाचा कुरुठा /
तेथ सेवा हा दारवंटा /
तो स्वाधीन करी सुभटा /
वोळगोनी //४८//

तरी तनुमनु जीवें /
चरणासी लागावें /
आणि अगर्वत्ता करावें /
दास्य सकाळ // ४९//


मग अपेक्षित जे आपुलें /
तेही सांगति पुसिलें /
जेणें अन्तःकरण बोधले /
संकल्पा न ये //५०//


ते  वेळी आपणपेयां सहिते /
इये अशेषेही भूतें /
माझ्या स्वरूपीं अखंडितें /
देखसी तूं //५१//

ऐसें ज्ञानप्रकाशे पाहेल /
ते मोहांधकारू जाईल /
जैं गुरुकृपा होईल /
पार्था गा //५२//

जरी कल्माशाचा आगरु /
तूं भ्रांतीचा सागरू /
 व्योमोहाचा डोंगरु /
होऊन अससी //५३//

तरी ज्ञानशक्तीचेनि पाडें /
हें आघवें चि गां थोकडें /
ऐसे सामर्थ्य असे चोखडे /
ज्ञानी इये //५४//

मोटके गुरुमुखे उदैजत दिसे /
 हृदयी स्वयंभची असे /
प्रत्यक्ष फावो लागे तैसे /
आपैसायाचे //५५//

सांगे अग्नीस्तव धूम होये /
 तिये धूमीं काय अग्नी आहे /
तैसा विकारु हा मी नोहें /
जरी विकाराला असे //५६//

देह तंव पांचाचे जालें /
हें कर्माचे गुणी  गुंथले /
भंवतसे चाकीं सूदलें /
जन्ममृत्यूच्या //५७//

हे काळानळाच्या तोंडी /
घातली लोणियांची उंडी /
माशी पांख पाखडीं /
तंव हे सरे //५८//

या देहाची हे दशा /
आणि आत्मा  तो एथ ऐसा /
पै नित्य सिद्ध आपैसा  /
अनादिपणे //५९//

सकळ ना निष्कळु /
अक्रीय ना क्रियाशीलु /
कृश ना स्थूलु /
निर्गुणपणें //६०//

आनंद ना निरानंदु /
एक ना विविधु /
मुक्त ना बद्धु /
आत्मपणें //६१//

तें परमतत्व पार्था /
होती ते सर्वथा /
जे आत्मानात्मव्यवस्था /
राजहंस //६२//

ऐसेनि जे निजज्ञानि /
खेळत सुखे त्रिभुवनी /
जगद्रूपा मनीं /
सांठऊनि मातें //६३//

हे विश्वचि माझे घर /
ऐसी मती जयाची स्थिर /
किम्बहुना चराचर  /
आपण जाहला //६४//

मग याहीवरी पार्था /                                     
माझिया भजनी आस्था /
तरी तयातें मी माथां /
मुकुट करीं //६५//

तो मी वैकुंठी नसें /
वेळु एक भानुबिम्बी न दिसें /
वारी योगीयांचीही मनसें/
उमरडोनि जाय //६६//

परी तयापाशी पांडवा /
मी हारपला गिंवसावा / 
जेथ नामघोषु बरवा /
करिती माझा //६७//

कृष्ण  विष्णु  हरि  गोविन्द /
या नावाचे निखळ प्रबंध /
माजी आत्मचार्चा विषध /
उदंड गाती //६८/

जयाचिये वाचे माझे आलाप /
दृष्टी भोगी माझे ची रूप /
तयाचे मन संकल्प /
माझा ची वाहे //६९//

माझिया कीर्तीविण /
जयाचे रिते नाही श्रवणं /
जया सर्वांगी भूषण /
माझी सेवा //७०//

ते पापायोनीही होतु का /
ते श्रुताधीतही न होतु का /
परी मजसी तुकिता तुका /
तुटी नाही  //७१//

ते चि भलतेणे भावें /
मन मत आंतु येते होआवे /
आलें तरी आघवें /
मागील वावो //७२//

जैसे तव चि वहाळ वोहळ /
जंव न पवती गंगाजळ /
मग होऊनी ठाकती केवळ /
गंगारूप //७३//

तैसे क्षत्री  वैश स्त्रिया  /
कां शुद्र अंत्यजादी इया /
जाती तव चि वेगळालिया /
जाव न पवती मातें //७४//


 यालागी पापयोनीही अर्जुना /
कां वैष शुद्र अंगना /
माते भजतां सदना /
माझिया येती //७५//

पैं भक्ती एकी मी जाणें /
तेथ सानें थोर न म्हणे /
आम्ही भावाचे पाहुणे / 
भलतेया //७६//

येर  पत्र पुष्प फळ /
हे भजावया मिस केवळ / 
वाचुनी आमुचा लाग निष्कल / 
भक्तितत्त्व //७७//

मग भूते हे भाष विसरला /
जे दिठी मी चि आहे सूदला / 
म्हणौनि निर्वैर झाला / 
सर्वत्र भजे //७८//

हे समस्थही श्रीवासुदेव /
ऐसा प्रतीतिरसाचा वोतला भाव /
म्हणोनि भाक्तामाजी राव /
आणि ज्ञानिया तो चि //७९ //

तुं मन हे मीचि करी /
माझिया भजनी प्रेम धरी /
सर्वत्र नमस्कारी /
मज एकाते //८०//

माझेनि अनुसंधाने देख /
संकल्पु जाळणे निःशेख /
मध्याजी चोख /
याची नाव//८१//

ऐसा मियां आथिला होसी /
तेथ माझीयासी स्वरुपा पावसी /
हें अंतःकरणीचे तुजपासी /
बोलिजत असे //८२//

तू मन बुद्धी साचेसी / 
जरी माझिया स्वरूपी अर्पिसी / 
तरी मते जी गा पावसी /
हे माझी भाक //८३//

अथवा हे चित / 
मनबुद्धीसहित  /
माझ्या हाती अचुंबित /
न शकसी देवो //८४//

तरी गा ऐसें करी / 
यया आठा प्राहारामाझारी / 
मोटके निमिषभरी / 
देतु जाय //८५//

मग जें जें का निमिख /
देखेल माझें सुख /
तेतुले आरोचक / 
विषयीं घेईल //८६//

 पुनवेहुनी जैसे /
शशी बिंब दिसें  दिसें /
हारपत अंवसें / 
नाही चि होये  //८७//

 तैसे भोगाआंतूनि  निगता / 
चित मजमाजी रिगता  / 
हळू हळू पंडुसुता / 
मिची होईल //८८//

म्हणौनी अभ्यासासी काहीं / 
सर्वथा दुष्कर नाही /
यालागीं माझ्या ठायीं / 
अभ्यासें मीळ //८९//  


कां जे यया मनाचें एक निकें /
जें देखिले गोडीचिया ठाया सोके / 
म्हणौनी अनुभवसुखचि  कवतिके
दावित जाइजे //९०//

बळियें इंद्रियें येती मना / 
मन ऐकवते पवना / 
पवन सहजे गगना /
मिळोची लागे //९१//

ऐसे नेणो काय आपैसे /
तयातेचि कीजे अभ्यासें /
समाधि घर पुसे /
मानसाचे //९२//

ऐसा जो कामक्रोध लोभा / 
झाडी करुनी ठाके उभा / 
तोची येवढिया लाभा / 
गोसावी होय //९३//


पाहे पां ॐ तत्सत् ऐसे /
हें बोलणें तेथ नेतसे /
जेथुनी का हें  प्रकाशे /
दृश्यजात //९४//


 सुवर्णमणि सोनया /
ये कल्लोळु जैसा पाणिया /
तैसा मज धनंजया /
शरण ये तुं // ९५//

म्हणौनी मी होऊनी मातें /
सेवणें आहे आयितें /
तें करीं हाता येतें /
ज्ञानें येणें //९६//

यालागी सुमनु आणि शुद्धमती / 
जो अनिंदकु अनन्यगति / 
पैं गा गौप्यही परी तया प्रती /
चावळिजे सुखे //९७//


तरी प्रस्तुत आता  गुणीं इहीं /
तू वाचून आणिक नाही / 
म्हनौनी गुज तरी तुझ्या ठायी /
लपवू नये // ९८//

ते हे मंत्ररहस्य गीता / 
मेळवी जो माझिया भक्ता / 
अनन्यजीवना माता /
बळका जैसी //९९//      

तैसी भक्तां   गीतेसी /
भेटी करी जो आदरेसी /
तो देहापाठीं मजसी / 
एकचि होय //१००//


ऐसे सर्व रूपरूपसें / 
सर्व दृष्टीडोळसे / 
सर्वदेशनिवासे / 
बोलिले श्रीकृष्णे //१०१// 


हे शब्देविण संवादिजे /
इंद्रिया नेणतां भोगिजे /
बोला आदी झोंबिजे / 
प्रमेयासी //१०२/

 जे अपेक्षिजे विरक्ती /
सदा अनुभविजे संती /
सोहंभावे पारंगतीं/
 रमिजे जेथ //१०३ //

हे गीतानाम विख्यात /
सर्व वांग्मया चे मथित/
 आत्मा जेणे हस्तगत /
रत्न होय // १०४ //

वत्साचेनी वोरसे /
दुभते होय घरोदेसे /
जाले पांडवाचेनि मिशे /
जगदुधरण //१०५//


आता विश्वात्मके देवे / 
येणे वाग्यज्ञे तोषवे  / 
तोषोनि मज द्यावें /
 पसायदान //१०६//

जे खळांची व्यंकटी सांडो/
तयां सत्कर्मी रति वाढो  / 
भूता परस्परे पडो / 
मैत्र जीवांचे //१०७//




तेथ म्हणे श्रीविश्वेश्वरावो / 
हा होईल दानपसावो / 
हेणें वरे ज्ञानदेवो / 
सुखिया झाला // १०८ //



 भरोनि  सद्भावाची अंजुळी /
मियां वोवियाफुलें मोकळीं /
अर्पिली अन्घ्रीयुगली / 
विश्वरुपाच्या //१०९//














































   



                                                                               












Friday, June 20, 2014

उदरीचा गर्भू जैसा /  नेणे मायेची वयासा/  देवांसी मी तैसा / चोजवेना //...gyn.ch 10